कविता

फल यूं ही नहीं मिल जाता

कीमत सावन की जानने को,
खुद पतझड़ होना पड़ता है,

फल यूँ ही नहीं मिल जाता है,
पौधा भी बोना पड़ता है,

खुशियाँ पाने की चाह है तो,
ग़म को भी ढोना पड़ता है,

तब चमक बिखेरता है अपनी,
जब आग में ‘सोना’ पड़ता है,

मालाएं बनाने को इक इक,
मोती को पिरोना पड़ता है,

जो चाहत रखो सफलता की,
आराम को खोना पड़ता है,

मंजिल को पाने की खातिर,
एक राही होना पड़ता है,

हिम्मत मेहनत की स्याही में,
विश्वास डुबोना पड़ता है,

हर एक इबारत लिखने को,
कागज़ संजोना पड़ता है,

फल यूँ ही नहीं मिल जाता है,
पौधा भी बोना पड़ता है।

— मुकेश जोशी

मुकेश जोशी 'भारद्वाज'

पता - ग्राम - टकौरा, पोस्ट ऑफिस - ऐंचोली, जिला - पिथौरागढ़, उत्तराखंड, 262530 मोबाइल नंबर - 9719822074 व्यवसाय - शिक्षक प्रकाशित कृतियाँ - हिंदी से हम, सृजन के फूल, चंद्रयान साझा काव्य संग्रह, सहित्यनामा पत्रिका में समय समय पर कविताएं प्रकाशित।