स्वास्थ्य

अवकाशप्राप्ति के बाद का जीवन

भारत में प्रत्येक व्यक्ति लगभग 60 वर्ष की उम्र में अवकाश ले लेता है- चाहे नौकरी से या किसी अन्य कार्य से। अमरीका आदि कई देशों में 65 वर्ष की उम्र में व्यक्ति को अवकाश दिया जाता है और उसके बाद भी उनको काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। जबकि भारत में आदमी 60 वर्ष का होते ही यह मान लेता है कि अब वह किसी काम का नहीं रहा और उसे अब दूसरों पर निर्भर रहकर ही जीना है। ऐसी मानसिकता रखनेवाले लोग वे होते हैं, जिन्होंने कभी अपने स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं की, केवल अपने सुख-सुविधाओं की चिन्ता की है।

उन्होंने जवानी में भी कभी कोई योग-व्यायाम नहीं किया होता। बस मनमाना खाना-पीना और कोई शिकायत हो जाने पर डाॅक्टर द्वारा लिखी हुई लाल-पीली गोलियाँ गटक लेना ही उन्होंने उचित समझा था। ऐसे ही लोग 60 वर्ष के होते ही स्वयं को अनेक रोगों से घिरा हुआ पाते हैं। उनके हाथ-पैर ठीक नहीं चलते। चार कदम पैदल नहीं चल सकते। एक मंजिल सीढ़ियाँ भी हाँफ-हाँफकर कठिनाई से चढ़ पाते हैं। घुटनों, पीठ या अन्य अंगों में दर्द रहता है। वे यह मान लेते हैं कि जीवन के अन्तिम क्षण तक ये सभी कष्ट उठाना उनकी नियति है और इसमें कुछ परिवर्तन नहीं हो सकता।

लेकिन वे गलती पर हैं। वे अभी भी स्वस्थ हो सकते हैं और अपने जीवन के अन्त तक स्वस्थ बने रह सकते हैं। स्वास्थ्य सुधारना प्रारम्भ करने के लिए कोई भी उम्र अधिक नहीं है। इसके लिए सबसे पहले तो उनको अपनी मानसिकता बदलनी होगी। उनको यह दृढ़ निश्चय कर लेना होगा कि उन्हें अपने स्वास्थ्य को सुधारना ही है और इसमें कोई भी बाधा हो, उसे पार कर लेंगे। यह निश्यच कर लेने से ही उनके स्वास्थ्य में आधा सुधार हो जाएगा।

स्वास्थ्य को सुधारना बहुत सरल है। इसके कुछ सरल बिन्दु हैं, जिनका पालन आपको करना है-

1. सुबह उठते ही एक या डेढ गिलास गुनगुना जल पियें। अच्छा हो कि उसमें आधा नींबू निचोड़ लें और एक चम्मच शहद मिला लें। फिर पाँच-दस मिनट रुककर शौच जायें।

2. शौच के बाद टहलने निकलें। टहलना आधा या एक किलोमीटर प्रतिदिन से प्रारम्भ करें और प्रति सप्ताह इस दूरी को आधा किमी बढ़ाते हुए अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिदिन 3-4 किमी तक टहलें। इसमें कोई आलस्य न करें। केवल मौसम खराब होने पर ही घर पर रुकें।

3. टहलने के बाद कहीं पार्क या खुली छत पर या बरामदे में बैठकर 10 मिनट विश्राम करें। इसी बीच आँखों, मुँह, गर्दन और हाथों के सरल व्यायाम करें। इससे इन अंगों में शक्ति आएगी और ये ठीक से काम करने लगेंगे।

4. अब कम से कम 5-5 मिनट गहरी साँसें लेना, कपालभाति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।

5. अन्त में, कम से कम 300 बार तालियाँ बजायें। फिर गायत्री मन्त्र बोलें और प्रभु का धन्यवाद करें।

इतना करने मात्र से आपका स्वास्थ्य सुधार के मार्ग पर चल पड़ेगा। इसके साथ ही अपने खान-पान पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। वही वस्तु खायें, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो और उतनी ही मात्रा में लें, जितना आप पचा सकें। भारी वस्तुओं और बाजारू भोजन से यथासम्भव बचें। दिनभर में कम से कम तीन लीटर शीतल जल अवश्य पियें। हर घंटे-सवा घंटे पर एक गिलास जल पीना सबसे अच्छा रहता है। मल-मूत्र के वेग को कभी न रोकें और न उनमें जोर लगायें।

अवकाशप्राप्ति के बाद के अपने समय का सदुपयोग स्वाध्याय करने, मित्रों तथा सम्बधियों से मिलने-जुलने, बच्चों के साथ खेलने और घरेलू कार्यों में सहयोग करने में कर सकते हैं, परन्तु कोई भारी कार्य न करें। साथ ही पर्याप्त विश्राम अवश्य करें। इससे वरिष्ठ नागरिक के रूप में आपका जीवन आनन्ददायक बना रहेगा। यदि आप कोई व्यायाम आदि नहीं करेंगे, तो गोलियाँ गटकते रहेंगे और कष्ट भोगते रहेंगे।

— डाॅ. विजय कुमार सिंघल

भाद्रपद कृ. 4, सं. 2081 वि. (23 अगस्त 2024)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]