पिंडदान एक धार्मिक अनुष्ठान
गया जी, बिहार का ऐसा जिला जो हिंदू, बौद्ध और जैन, तीनों धर्मों के अनुनायियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक सांस्कृतिक केंद्र है। गया जी शहर तीन ओर पहाड़ों से घिरा, फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ, यह वही जगह है जहां भगवान श्री राम ने अपने पिता के लिए तर्पण, पिंडदान किया था। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर है, जहां माना जाता है कि गयासुर नामक राक्षस को भगवान विष्णु ने अपने पैरों तले दबा रखा है। यही वो जगह है, जहां पर आज भी लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति एवं मोक्ष की कामना हेतु तर्पण एवं पिंड अर्पित करते हैं। सौभाग्य से इस पितृपक्ष के अवसर पर २७/०९/२०२४ सितंबर को हम दोनों पतिपत्नि को अपने परिवार के पूर्ण रूपेण शारीरिक मानसिक सहयोग से अपने पितरों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर मिला। जिन पूर्वजों के आदर्शों और त्याग की वजह से हमारा आज वर्तमान सुखद, समृद्ध, सम्मानजनक फल फूल रहा है। भारतीय संस्कृति अनुसार उनके मरणोपरांत हमारे भी कुछ कर्तव्य हैं, जिन्हें पूर्ण करना हमारा नैतिक दायित्व है। आज हम जो भी हैं उन्हीं की वजह से हैं, उनके बिना हम अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते। उनके आशीर्वाद के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। हमारे जीवन में पूर्वजों, संस्कारों, धार्मिक रीति रिवाजों का बहुत महत्व है। सनातनी धार्मिक मान्यता है कि पूर्वज भी, अपने वंशजों द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों का इंतजार करते हैं, और प्रसन्न हो कर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। मातापिता या बुजुर्गों के जीवित रहते हुए हमसे ना जाने कितनी गलतियां होती हैं, और हम नादानी वश उन्हें स्वीकार नहीं पाते, क्षमा मांगना तो बहुत दूर की बात है। वैसे तो हम जीवन पर्यंत माता पिता, पूर्वजों के ऋणी हैं, और उनका नित प्रतिदिन आभार मानना चाहिए। लेकिन पितृपक्ष के सत्रह दिन (भादों शुक्ल पक्ष चतुर्दशी से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या) केवल धार्मिक या कर्म कांड अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह पितृऋण मुक्ति, क्षमा याचना, पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने का विशेष अवसर है। ऐसी मान्यता है कि इस पुण्य क्षेत्र में तर्पण पिंडदान करने से पुत्र अपने पितृऋण से हमेशा के लिए उऋण हो जाता है। यहां पर सत्रह दिन, सात दिन, पांच दिन, तीन दिन या एक दिन में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। समयाभाव एवं जानकारी न होने से हमने यह अनुष्ठान एक दिन में ही संपूर्ण किया। पिंडदान करते हुए कहीं न कहीं आस पास उनका अहसास होता है, लगता है वो आपके साथ हैं कभी लगता है अब वो हमसे दूर (मोक्ष /मुक्ति) जा रहे हैं। यह सोच कर कब आपकी आंखों में गीलापन आ जाता है, पता ही नहीं चलता आखिर क्या है जीवन? एक दिन श्राद्ध कर्म अनुष्ठान में फल्गु नदी, विष्णुपद मंदिर एवं अंत में अक्षयवट में श्राद्ध पिंडदान कर अनुष्ठान समाप्त किया जाता है। वैसे तो फल्गु नदी श्रापित नदी है। प्रसंग अनुसार फल्गु नदी के झूठ बोलने पर सीतामाता ने फल्गु नदी को सूख जाने का श्राप दिया था। बाद में फल्गु नदी को अपनी गलती का अहसास होने, क्षमा याचना करने पर मां सीता ने फल्गु नदी को मानसून के चार महीने पानी से पूर्ण, तथा बाद में अंतः सलिला होने का वरदान दिया। साथ ही फल्गु नदी पिंडदान के लिए फलदायी प्रमुख आधार बनाया, इसके बिना पिंडदान संभव नहीं। आज भी चाहे कितनी भी गर्मी हो, जल स्तर पूरे शहर में कई फुट गहरे हो गया हो, लेकिन फल्गु नदी में हाथ से बालू हटाकर जल निकाल सकते हैं।
— मनु वाशिष्ठ