कहानी – गृहलक्ष्मी
मौसम का मिजाज बदल रहा था। एक तरफ चिलचिलाती गर्मी तो दूसरी तरफ बारिश ने अपना कब्जा जमा रखा था। रोज कमाने ,रोज खाने वालों के लिए पेट पर बन आई थी। दो वक्त भोजन की जगह एक वक्त ही नशीब हो पा रहा था।
पचास दिन की छुट्टियां खत्म हो रही थी। सुबह उठते ही पापा आज फीस नहीं दोगे, तो मैं स्कूल नहीं जाऊंगा ।रसोई घर से पत्नी सोनी – ऐ जी , कल तक तो थोड़ा सरकारी चावल था तो बन रहा था आज तो वह भी नहीं है। नाश्ते में क्या बनाऊं! कुछ राशन पानी लाओगे भी! (बुदबुदाते स्वर में) पता नहीं व्याह ही क्यों किया ,जब खिलाने तक के पैसे नहीं थे। तीन दिन हो गए घर पर कोलगेट तक नहीं, कैसे दिन बीतेगे आखिर !
लंबी लिस्ट थमाते हुए, लाइए वरन् मैं जा रही सोने ! सोनी ने कहा।
” अरे सोनी , तुम तो देख ही रही हो, काम मिल नहीं रहा है, मैं कोशिश तो कर ही रहा हूं ।”
” हां, मैं भी तो आपका दो वर्षों से केवल कोशिश ही देख रही हूं । पता नहीं मेरी किस्मत ही फूटी है। मां-बाप ने क्या देखकर ब्याह कर दिया।”
दादाजी पिंटू को बुलाकर –बेटा, तुम्हें कितनी फीस देनी है ?
दादाजी , साढे चार सौ रुपए, पर मुझे ₹20 ज्यादा दीजिएगा ।कितने दिनों से मैंने चिप्स नहीं खाएं।”पिंटू ने कहा।
लो मास्टर जी को देना और ख्याल कर रसीद लेते आना । दादाजी ने समझाते हुए कहा।
शंभू कमरे में बैठ सब कुछ सुनता रहा। यह सुनते ही सोनी — बाबूजी ने फीस तो दे दिया, अब आप राशन वासन तो लाओ कुछ! भूखे ही मारोगे क्या?
शंभू उदास मन से थैला लिए निकल पड़ा । कुछ आगे बढ़कर दुकान पर पहुंचा ही था कि– अरे शंभू , पुराना बकाया दे दो भाई , महाजन को देना है, कितने महीने हो गए आखिर!”
” हां हां दूंगा , अगले महीने तक पक्का।”
दो-चार कदम आगे बढ़ दूसरी दुकान पर पहुंचते ही , पुरानी लिस्ट थमाते हुए दुकानदार ने कहा– अरे शंभू , आजकल दिखते ही नहीं! पहले की लिस्ट क्लियर कर दो ।नया साल आ रहा है, खाता वही बदलना है।
हां हां.. शंभू उदास मन से वहीं खड़ा रहा। अपने हाथों को गंभीर नजरों से निहारता रहा। ( नम आंखों से) ये अंगूठी एक महीने के लिए गिरवी रख लीजिए और मुझे अभी ₹2000 दीजिए । दुकानदार गौर से देखता रहा। वह मौन हो रख लिया और पैसे थमाया।
शंभू ने लिस्ट आगे कर करते हुए ,यह राशन नाप दीजिए ।
सूरज सर पर चढ़ने ही वाला था। सोनी पड़ोसी चाचा के पास जाकर — चाचा जी ,चाची दिख नहीं रही है, कहीं गई है क्या?
इतनी में सोनी की नजर चाचा के अखबार पर पड़ी, जिसमें “कुटीर उद्योग के लिए सहायता” ” यह पढ़ते ही वह सोच में पड़ गई।। पढ़ने के बाद ये अखबार मुझे दीजिएगा? सोनी ने गुजारिश की।
हां-हां, जरूर बेटा ।
“चाची जी, मुझे थोड़ी सी नमक दीजिएगा ?”
“ले जाओ, बेटा लेकिन नमक कभी किसी को देते नहीं, और ना ही लेते हैं ।”
सोनी शंभू के घर आते ही उस खबर का जिक्र की ।
लेकिन सोनी यह सब इतना आसान नहीं , न जाने कितने ही सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने होंगे। मेरे से तो यह नहीं होने वाला, मगर तुम निकाल कर करोगी क्यों ! शंभू ने जानने की इच्छा जाहिर की।
पता है, मैंने अपने स्कूल के दिनों में ही मोमबत्ती बनाने का कोर्स किया था, और उसमें ज्यादा कुछ लगता भी नहीं। शंभू मौन हो सुनता रहा। मैं यदि वह कर पाई तो….
कल बैंक जाकर सारा सिस्टम पता करती हूं।
” सोनी वैसे यह सब इतना आसान नहीं! शंभू ने कहा।
“ऐ जी,वैसे कोशिश करने से क्या हर्ज है , “
“करो फिर जो तुम्हारी मर्जी.. “
इतना कहते ही शंभू बाहर की ओर निकल पड़ा।सोनी मैनेजर से बात कर सारे कागजात तैयार कर ली और उसी पैसे से मोमबत्ती बनाने की सारी इंतजाम की। अब वह अपना सारा समय कामकाज में ही बिताती। धीरे-धीरे परिवार की स्थिति सुधरती गई।
धीरे -धीरे वह सबकी प्यारी बहू बन गई, वही शंभू के साथ रिश्ता भी प्रतिदिन सुधरता ही गया ।
एक दिन सोनी बाजार से अपनी पसंद की एक कमीज ले आई । संभु को अकेले कमरे में देख
सज- संवर कर हाथों में वह पैकेट लिये– ये आपके लिए –जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ।
“क्या ! हां आज मेरा जन्मदिन है तुम्हें कैसे पता ? अरे मुझे तो याद ही नहीं था ।मैंने तुम्हें शायद कभी बताया भी नहीं!”शंभू ने खुशी जाहिर की।
” हां ,लेकिन मुझे पता है ।यह अलग की बात है कि पारिवारिक स्थितियो ने मुझे इस तरह जकड़ रखा था ,मैं कुछ कर नहीं पाती थी ।”
“मगर इसकी क्या जरूरत थी , मैं तो वैसे भी कम ही बाहर जाता हूं ।”शंभू ने कहा।
“जानते हैं, मुझे बहुत शौक है इन चीजों का , आज भी मुझे वो दिन याद आता है जब बाबूजी मां के हर जन्मदिन पर ,करवा चौथ पर ,दीपावली पर उनके पसंद के तोहफे दिया करते थे और मां उसे बड़े प्यार से अगली सुबह पहनती। आज भी मुझे वो सब कुछ याद है।
शंभू सोनी के चेहरे को ध्यान से देखता रहा ।” सॉरी सोनी, मेरी कारण तुमने जीवन में इतनी बड़ी कुर्बानी दी है। मुझे क्षमा करना !”
” संभु यह क्या कह रहे हो तुम! मैं तुम्हारे साथ सात फेरे तो लिया लेकिन कभी तुम्हारे अरमानों को पूरा न कर पाया।”
जानते हो यह सब का असली श्रेय मेरे पिताजी को जाता है ।बचपन से ही वो मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किये । जानते हैं जब मैं कोर्स के लिए जाती ठिठुरती सर्दी में कंबल लपेटे वहां पहुंच जाते। वहीं बैठे शंभू उसकी सारी भावनाओं को समझ रहा था।
सोनी अगले सप्ताह पिंटू का जन्मदिन है , क्यों ना उसमें तुम्हारे मम्मी -पापा को भी बुला ले।इसी बहाने उनसे मिलना भी हो जाएगा।”
सच्ची, क्यों नहीं!
यह खबर सुनते ही दोनों बड़े खुश हुए ,उधर चिंटू की खुशी का भी ठिकाना ना था। जन्मदिन का समारोह संपन्न हुआ। सोनी का घर और उनके रिश्ते में मिठास देख उनकी खुशी सातवे आसमान पर नाच रहा था । समाप्त कर घर लौटने के लिए बाहर निकल ही रहे थे कि उनके लिए कुछ कपड़े ला— पापा जी,ये लीजिए, मां ये आपके लिए….। जीवन में पहली बार कुछ आप लोगों को अपने हाथों से देने का सौभाग्य हो पाया , “सोनी ने कहा।
“बेटा ,लेकिन इसकी क्या जरूरत थी।”
तुम्हारी खुशी देख आज मै चैन की नींद सो पाउगा।
इतनी में सांसु मां ले लीजिए बहु ने बड़े प्यार से लाया है। सचमुच बहु ने खोई लक्ष्मी को पुनः अपनी मेहनत से गृहलक्ष्मी बना दिया। सचमुच आज सोनी के कारण ही हम जीते जी यह सब कुछ देख पाए।” सासू मां की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
” कोई बात नहीं ,वह भी तो आपकी बेटी है , अब संभु करें या सोनी, क्या फर्क पड़ता है ,दोनों तो आप ही के बच्चे हैं! ” पिता के मुख से यह आश्वासन भरा शब्द सुन एक तरफ शंभू को बहुत खुशी हुई , सास- ससुर को तसल्ली वहीं सोनी का सीना चौड़ा हो उठा ।सभी छलछलाई आंखों से मुस्कुराहट ने अपना कब्जा जमा लिया….।
— डोली शाह