कविता – सुकून
सुकून
जिसकी तलाश में
भाग रहा है हर शख्स
सुबह, शाम चारों पहर,
शिद्दत से लगा है कमाने में
धन-दौलत,नाम-शोहरत,
पर पाकर भी उसे
नहीं है सुकून एक पल यहां
यदि पाना है सुकून
तो देनी होगी तिलांजलि
क्रोध,घृणा, ईर्ष्या जैसे भावों को
करना होगा अपेक्षाओं का त्याग और
उपेक्षाओं को नजरअंदाज,
ढालना होगा स्वयं को
बदलती परिस्थितियों के अनुसार ,
बढ़ते रहना होगा निरंतर कर्म-पथ पर
मंजिल की परवाह किए बगैर और
जीना होगा जीवन – यात्रा के हर पल को
कृतज्ञता के भाव के साथ
है ज्ञात सभी को
संसार की क्षणभंगुरता
जहां अगले पल का कुछ पता नहीं
खड़ी है मौत हर डगर, हर पहर
जिसकी आगोश में तय है मिलना
वो सुकून एक दिन
जिसको जीते जी भी
पा सकता था हर शख्स यहां।
— मृत्युंजय कुमार मनोज