कविता

यही कुंभ है

यह सत्य का उदघोष है, सनातन संस्कृति का प्रभाव है,
आस्था की डुबकी में हमारी विरासत है
संस्कारों में हमारा धर्म है,
यही कुंभ है

सनातन की धरोहर कहें या,
संस्कृति का अटूट प्रयास
हिन्दू होने की जिम्मेदारी है,
शाही स्नान व पर्वों की सार्थकता से प्रफुल्लित होता प्रयाग,
यही कुंभ है

यह सैलाब है जनसमुदाय का,
साधु-संत-तपस्वीयों की आस्था का
जीवन को आत्मचिंतन की राह दिखाता है,
यही कुंभ है

ज्ञानी, दानी और ध्यानियों की भूमि है यह,
धर्म की यह पावन भूमि संगम है यह
तीन नदियों की त्रिवेणी है प्रयागराज,
गंगा की अविरल धारा जहाँ बहती है
यही कुंभ है

धर्म की राह पर चलने वालों को,
इस महाकुंभ में गंगा में डुबकी लगाना है।
भारत की पुण्य भूमि पर हमें,
पवित्र गंगा में डुबकी लगाना है।
क्योंकि, यही कुंभ है

— हरिहर सिंह चौहान

हरिहर सिंह चौहान

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001 मोबाइल 9826084157

Leave a Reply