धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

चलो सुपारी दें आयें 

जी हां,,,हम जा रहे हैं सुपारी देने,अरे सुपारी देने जा रहे हैं,पर किसे देंगे सुपारी और किसके लिए ,,अरे भई आप बिल्कुल भी मत घबराईए।हम किसी को मारने की सुपारी नहीं दे रहे हैं,,हम तो मांगलिक कार्य का निमंत्रण दे रहे हैं।

क्या? मांगलिक कार्य के लिए सुपारी।जी हां,, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक ब्राह्मण जाति का समुदाय रहता है। जिन्हें 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज कहा जाता है। इस समाज में मांगलिक कार्य होने पर कार्ड बांट कर निमंत्रण देने की प्रथा नहीं है। कार्ड की जगह निमंत्रण स्वरुप सुपारी देने कि प्रथा है।

सुपारी देने की प्रथा में सबसे पहले ईष्ट देव स्वामी जगन्नाथ जी के मंदिर में उनके श्री चरणों में सुपारी अर्पित की जाती है।उसके पश्चात अन्य नाते रिश्तेदारों को सुपारी भेंट कर मांगलिक कार्य  में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया जाता है। सुपारी देने का कार्य महिलाएं नहीं कर सकती।यह कार्य केवल पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। एक सुपारी एक कटोरी में रखा जाता है और फिर बताया जाता है कि अमुक तारीख को मंडप, हल्दी और अमुक तारीख को

पाणी ग्रहण संस्कार और भोज का आयोजन है, अमुक स्थान की वधू है और अमुक स्थान का वर है। फिर उस सुपारी को निमंत्रण प्राप्त करने वाले घर के पुरुष ही उठाते हैं यदि उस परिवार में उस समय कोई पुरुष नही है तो सुपारी देने वाला पुरुष ही उस सुपारी को उठा कर कटोरी से अलग रख देता है और उस सुपारी को वहीं छोड़ देता है।

यदि निमंत्रण समधी के घर पर दिया जा रहा हो तो दो सुपारी रखा जाता है। अतिरिक्त सुपारी को मानी सुपारी कहा जाता है और  एक ही गोत्र वाले के घर सुपारी देने का रिवाज नहीं है। एक ही गोत्र वालों के घर मौखिक निमंत्रण दिया जाता है। सुपारी वाला निमंत्रण केवल विवाह और यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ संस्कार में ही दिया जाता है। अब समाज में परिवार बढ़ने लगे हैं और एक ही तिथि पर की विवाह, जनेऊ होने लगे हैं तो तिथि भूल ना जायें इस लिए एक छोटे से कार्ड में  कार्यक्रम की तिथि छपवा कर सुपारी के साथ दिया जाने लगा है।

— अमृता राजेन्द्र प्रसाद 

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़

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