आधार छंद – लहर
हम सनातन
जोर है जब, दीखता अब।
है बड़ा मन, श्रेष्ठ चिंतन।
देख मंजर, खेप खंजर।
सोचता मन, दे दनादन।।
सत्य पथ पर, आज चलकर।
अब नहीं दम, क्या करें हम।।
धैर्य धर जब, हारना कब।
लक्ष्य बाधक, दूर साधक।।
आज तू चल, ओढ़ वल्कल।
राह में सब, मान लें रब।।
दौर आकर, है जगाकर।
बोलते जन, हम सनातन।।
मौन साधन, पथ पुरातन।
साथ मिल अब, बढ़ रहे सब।।
जोड़ कर हम, चेतना बम।
हम सनातन, मानता मन।।
सुधीर श्रीवास्तव०३.०५.२०२५
आधार छंद– लहर
सृजन शीर्षक -हे प्रभाकर
प्रभु दिवाकर, तुम प्रभाकर
दो हमें पथ, चाह कब रथ।।
भूल सबकी, आस जिनकी।
चाहता मन, मम यही धन।।
कामना कर, मत कभी डर।
चाल चल जब, याद रख सब।।
मान शंकर, मौन कंकर।
साधना रत, सौम्य चाहत।।
काल का बल, अतुल अविचल।
साथ निज कल, साथ में चल।।
तू डगर पर, तब नहीं डर।
याद रख, सब्र रस चख।।
प्रीति पावन
प्रेम का धन, साधना बन।
कर्म का पथ, भावना रथ।।
साथ तो चल, तू नहीं टल।
प्रीति पावन, मान सावन।।
संग तू कल, प्रेम था बल।
कथित जोकर, हाथ धोकर ।।
प्रेम संचित, देख वंचित।
विकल है मन, प्रीति का वन।
त्याग तप बल, संग में छल।
धर्म बंधन, शोर क्रंदन।।
मौन रावन, प्रीति पावन।
है यहां मन, चाल बन- ठन।।