मुक्तक/दोहा

सोरठा छंद

किसे फ़िक्र है आज, अपनों के ही दर्द की।
छिपते सारे राज ,जब  पीड़ा हो तोषिनी।।

किसको कहें गरीब , सब गरीब हैं जब यहां।
दुनिया बनी रकीब, ढोल बजाते सब जहां।।

देना सबको ज्ञान, होता तो मुझसे नही।
ये मेरा अभिमान, लग सकता है आपको।।

आप लीजिए जान, करना नेकी रोग है।
सबसे सुंदर ज्ञान, करके नेकी भूलना।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

Leave a Reply