गीत/नवगीत

विरहानल तन-मन झुलसाती

दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।
रीत गए आँसू नयनों के, विरहानल तन- मन झुलसाती ।।

छद्म वेश में घुस आतंकी, लगा पूछने धर्म बताओ ।
हिन्दू कहते ही गोली क्यों, दागी उसने यह समझाओ ।।
आतंकी नागों ने हमला, किया भले ही अकस्मात है,
सदा साथ चलने का वादा, तोड़ न सकते ये आघाती ।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।

रह-रहकर यह पूछ रहा दिल, क्या जीवन भर होगा रोना ।
हृदय प्रश्न करता यह खुद से, जुर्म हुआ क्या हिन्दू होना ।।
क्या कसूर था प्राणनाथ का, बेरहमी से मारा उनको,
सहमी सहमी बैठी अबला, कैसे समझे अब यह थाती।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।

किया भाग्य ने आज विलग है, बैठी हूँ पर पास तूम्हारें ।
बरस रहें नयनों से मोती, भीगी पलकें तुम्हें निहारें ।।
ईश्वर के घर देर भले हो, कहते पर अंधेर नहीं है,
सजा मिलेगी आतंकी को, पुनः पुनः दिल को समझाती ।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।

होगा नहीं पुनः प्रभात क्या, लिपट तिरंगे में तुम जाओ ।
खुशी खुशी मैं करूँ विदाई, भारत माँ का मान बढ़ाओ ।।
श्वास थामकर करूँ प्रतीक्षा,टूट न पाये हिम्मत मेरी,
पुनः जन्म ले आओगे फिर, मन में यह विश्वास जगाती।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।

— लक्ष्मण लड़ीवाला ‘रामानुज’

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)

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