मणिकर्णिका
तीन लोक नौ खंड के कर्ता
भक्ति मृत्यु मोझ धर्म के प्रंचड सुलेखा
हे काशी तेरी अनोखी गाथा
राम नाम के वस्त्रों से लिपटा प्राणहीन शरीर कालू डोम सजा देना
काशी के जश्र में कण कण में मिला देना
अंत अस्ति प्रारंभ
हे मणिकर्णिका शिव से मुझे मिला देना
जहाँ मुर्दो की पुजा होती
अस्थियाँ बने कपाल
लाशों के उस शमशान घाट पे राम और शिव होते एक नाम
जोड़ हाथ करुं शिव शम्भू की पुकार
हे मणिकर्णिकाकेश्वर तन की भस्म बना लपेट लेना
महादेव की काशी तुम
प्राणहीन शरीर को मुक्ति दे शिव से मुझे मिला देना।
— अभिलाषा श्रीवास्तव