ग़ज़ल
मौत कब किसको बताकर द्वार जाती है,
जिन्दगी अक्सर गमों से हार जाती है ||
देख होता है बड़ा दुख बेबसी उनकी,
जब दवाई बिन गरीबी मार जाती है ||
आँख बस है साथ उनके खूब रोती है,
साथ हरदम आंसुओं की धार जाती है ||
हादसो ने जिन्दगी ऐसे बदल दी है,
घाव ये देकर नये हर बार जाती है ||
आप जिसको सोच कर भी कांप उठते हो,
कातिलों की सोच हद के पार जाती है ||
बिन सहारे के नहीं कोई गया मरघट,
देह सबकुछ छोड़, कांधे चार जाती है ||
— शालिनी शर्मा