आवरण
कविताएँ आवरण हैं,
परिधान है वो लेखनी।
आचमन है समर्पण है।
आवरण उघारे नहीं
कलेवर लगाकर पढ़े।
उन्हें महसूस करें
उन्होंने महसूसा है,
तभी समसि को समर्पित किया
माँ शारदे के आशीर्वाद से।
तूलिका महज स्याह नहीं
वह अस्थि मज्जा रक्त है
उसने दामिनी को लिखा
उसने किन्नर, वैश्या को लिखा।
पात्र के हृदय को जिया,
उसे परिधान बना कर
फिर भाव को शब्दों में पिरोया,
उसकी तड़प को कई बार महसूस किया
तब उसे शब्द का आकार मिला।
समाज से शब्द भाव ग्रहण कर
शब्द का आवरण पहना उकरते हैं।
वह भुक्त भोगी नहीं है,
संवेदना और वेदना की
परिपाटी में उलझी हुई
आपकी भावनाओं को
उसकी कलम ने लिखा।
आप भी आवरण बना
उसे ओढ़े महसूस करें।
आवरण का पोस्टमार्टम
ना करें!सिहरन होती है।
— सविता सिंह मीरा