गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभी तो चाहतों के फूल दिल में खूब खिलने दे।
सभी अरमान जो पलते हृदय में हैं मचलने दे।।

मिली हैं ठोकरें संसार मारे नित्य देखो।
कहाँ तक सह सकेंगे आज मुझको तो सँभलने दे।।

बहारों ने अभी तक देख गुलशन को छुआ कब है।
घटाओं को बगीचे में अभी धीरे उतरने दे।।

अँधेरा अब घना होता छँटेंगे घन घनेरे ही।
वफ़ा का देख सूरज अभी पूरा निकलने दे।।

घिरे जाते यहाँ अब देख बादल युद्ध होने के।
समय यह आज संकट का इसे अब तो बदलने दे।।

तनावों में घिरा जीवन बड़ा ही ये दुखद होता।
अभी है पल यही आतंक भरता सोच टलने दे।।

शिकायत अब करें किससे किसी को क्या पड़ी होगी।
हमें खुद ही सँभलना है अभी तो दर्द पलने दे।।

घड़ी ये देख मुश्किल है बहुत ही सोच कर चलना।
( परिन्दें लौट आयेंगे सुनहरी शाम ढलने दे।। )

बने रोड़े प्रगति में देश में अब शत्रु ही अब तो।
सभी काँटे हटाने हैं वतन को आज बढ़ने दे।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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