कुछ लिखा जाए
चलो कुछ लिखा जाए,
लोगों से सीखा जाए,
मजदूरों को देखा मैंने
बस मजदूरी करते हैं,
इससे अच्छा बेहतर वाला
काम क्यों नहीं पकड़ते हैं,
ताउम्र लगे हैं बस यूं
लिए चित्त,मलीन मुरझाए,
चलो कुछ…
बाबू लोगों को देखा मैंने
कलम हाथ धर जाते हैं,
न मिले तलक जब चढ़ावा
स्याही कलम की नहीं सुखाते हैं,
ठाठ बाट राजाओं जैसा
फिर क्यों कयामत आए,
चलो कुछ…
देखा मैंने नेताओं को
झूठे भाषण देते,
किये नहीं हैं जिस काम को
उसकी भी बलाएं लेते,
निर्वाचन में झूठी डंका
जहां तहां ये बजाते,
हम ही आएंगे पॉवर में
ऐसा सबको जताते,
धांधली कर इस बार भी
मनमाफिक रिजल्ट लाएं,
चलो कुछ…
— राजेन्द्र लाहिरी