खुशबू
ये चिट्ठियां भी अनेक अनकहे राज खोलती हैं!
“जिंदगी में समझौता आवश्यक नहीं है, आवश्यक है आपसी समझ. आपसी समझ होने से ठहराव आएगा, ठहराव से समझौता तो खुद-ब-खुद हो जाएगा और जीवन सरल हो जाएगा औए सुखद भी.” विभोर ने कभी न भेजी गई एक चिट्ठी में लिखा था, पर न तो वह समझौता कर पाया, न आपसी समझ से काम ले पाया! विभोर के चले जाने के बाद मीना को उसके अलमारी से कुछ चिट्ठियां मिलीं! मीना का मायूस हो जाना स्वाभाविक था!
एक और चिट्ठी में लिखा था-
“समर्पण आवश्यक है,
अपने काम के प्रति,
अपने कर्तव्य के प्रति,
जगत-कर्त्ता के प्रति,
समर्पण के साथी स्नेह-सहयोग, सत्कार-सम्मान, सफलता स्वतः ही मिल जाते हैं.”
“समर्पण तो विभोर की विशेषता थी!” भले ही तब मीना समझ नहीं पाई थी, पर अब उसे उस चिट्ठी से विभोर की खुशबू आ रही थी!
— लीला तिवानी