अनजान मैं रही कि….
अनजान मैं रही कि … क्या मंज़िल है मेरी पूरी शिद्दत से तेरी मंज़िल को अपना ही मानती रही !
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Read Moreमेरे घर में भी था एक पीपल का पेड़! आस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदार, सभी उसकी निर्मल छाया में ऐसे आकर बैठते थे,
Read Moreलाटरी लग गयी थी रानी की । एकदम खरा सौदा । कोई नीच काम भी नहीं था कि उसकी आत्मा
Read Moreबाहर बादल अनवरत बह रहे थे और खिड़की पर बैठी सुमि की आँखें भी उसी तीव्रता से बह रहीं थीं
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