उम्मीद
अपने झड़ते बालों को देख सुनिधि बुझ सी गई थी। धीमी सी आवाज में जय से बोली – “सुनो!मैं सोच
Read Moreभुला के वादे… भूला के कसमें लाए डोली किसी ओर की सजना। उतर के डोली, जब आँगन तेरे, उसने पायल छनकाई
Read Moreख्वाब अपनी पलकों पे, दिन – रात मैं सजाती हूँ ! देख हँसी लब पे तेरे, मैं पहरों मुस्कुराती हूँ
Read Moreक्यों मिले हो मुझे, जिन्दगी के इस मोड़ पर अपनाना चाहूं मैं… फिर भी तुझे अपना न सकूं !! क्यों
Read More“ये क्या लिखा है तुमने? न सिर है, न पैर। वाह-वाही लूटने के लिए अश्लील शब्दों की भरमार… पता नहीं
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