घनाक्षरी छंद
तन पर रमा भस्म, गले नाग हार डाले, जटा बीच गंगा धर, सृष्टी रखवारे हैं । भूत प्रेत नर नारी,
Read Moreतन पर रमा भस्म, गले नाग हार डाले, जटा बीच गंगा धर, सृष्टी रखवारे हैं । भूत प्रेत नर नारी,
Read Moreफूल सी ज़िन्दगानी हुई, जब मोहब्बत सुहानी हुई। जिन्दगी ठहरी ठहरी सि थी आप आए रवानी हुई । आइना नाज़
Read Moreसाहिबा जैसा कि नाम से ही लग रहा है सबके दिल में रहने वाली हमेशा हसने वाली और दूसरो के
Read Moreवही बसा है दिल में मेरे, उससे बनी कहानी है। दिल की वो धड़कन है मेरी साँसें भी बेगानी है।।
Read Moreताटंक छंद- वन को जाते बन सन्यासी, राम लखन अरु माँ सीता । तीनों के बिन देखो कैसा, अवध लगे
Read Moreजनक नन्दीनी समझ न पायी, भाग्य लिखा जो लेख था । जीवन मे वनवास लिखा था, ये ह्रदय चाहे नेक
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