कविता – शुन्य से अनंत तक परिभाषा
शुन्य से अनंत तक परिभाषा चैतन्य मन में जागी अभिलाषा सत्य अंतरमन में चीख रहा है काल सम्मुख खड़ा दीख
Read Moreशुन्य से अनंत तक परिभाषा चैतन्य मन में जागी अभिलाषा सत्य अंतरमन में चीख रहा है काल सम्मुख खड़ा दीख
Read Moreसिसक रही माँ के गर्भ में चीख रही लाडली मौन ध्वनि में करती सवाल अंकुरित कली न जन्म दे माँ
Read Moreरोती मानवता की राष्ट्र मैं आज चीख सुनाने आई हूँ भुगत रहा परिणाम करनी का आज बताने आई हूँ प्रकृति
Read Moreपराये घर जाना है तुझे रोटियाँ ज़रा ठीक से बनाना सीख ले कुछ सिलाई करना कुछ बुनाई करना कुछ खोकर
Read Moreप्रेम कान्हा की मुरली का मधुरिम स्वर है पी गयी गरल मीरा ये प्रेम का ही असर है प्रेम की
Read Moreहे मनुष्य इतना जान ले अब ईश्वर को पहचान लेक्यों मूख बना क्यों अंध बना अब तू ये ज्ञान ले
Read Moreमाँ ही वर्ण है माँ ही शब्द है, माँ व्याकरण का सार हुई सारी सृष्टि समाहित जिसमें ,माँ जीवन का
Read More