कविता

माँ की सीख

पराये घर जाना है तुझे
रोटियाँ ज़रा ठीक से
बनाना सीख ले
कुछ सिलाई करना
कुछ बुनाई करना
कुछ खोकर पाना सीख ले
तुझको हर रस्म निभानी है
बेटी के जीवन की कहानी है
बाबुल का घर आंगन तो
दो दिन का आसरा
सुसराल ही लाडो
मायका जैसा घर तेरा
आज नहीं तो कल सही
एक दिन बेटी को जाना है
अनजान लोगों को अपनी
समझें रिश्तों की डोर में बांधने की आदत है
माँ जैसी होगी सास कभी थोड़ा थोड़ा डांटेगी
लेकिन सच में लाडो तेरा दुख सुखटेगी
बहन जैसी होगी ननद
जो तुझ पर हक जतायेगी तुझ हसी मज़ेदार
कर वो भी
हसीगी
पिता के रूप में ससुर
उसके सम्मान कारख रखावगा
भाई जैसा होगा देवर उसके
पुत्रवत ध्यान रखना
बेटी जीवन की कठिन डगर पर
घबराना नहीं
जीवनसाथी का हाथ थाम चलना
डगमगाना नहीं शादी
के बाद हर बेटी का घर
ही सुसराल है,
परिवार परिवार को रोशन करती वही है
तो
कमल माँ कभी चुभती है। है तेरी ये बातें
आज याद आती हैं तेरी ये बातें बनी
रहती हैं लेकिन भोली थी
सच में तू सच्ची थी
मेरी माँ सबसे अच्छी थी

— आरती शर्मा (आरू)

आरती शर्मा (आरू)

मानिकपुर ( उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी एस सी