कविता

बारिश

बादल अपने उर में समेटे
आए हैं देखो लेके पानी
रिमझिम रिमझिम नटखट
आई मचलती बरखा रानी
दमक दमक बिजली दमक
अंबर का हृदय गया चमक
जब पहली बूंद पडी़ धरा पर
सुमन के जैसे खिला मेरा उर
मंद मंद समीर का झोंका
स्पर्श कर रहा है मेरा वदन
छोटी छोटी बारिश की बूंदें
प्रफुल्लित करता मेरा मन
बारिश की ऋति मुझको भांती
अनगिनत ये अहसास जगाती
हवा चूम रही है यूँ ललाट को
जैसे खोल रही उर कपाट को
भीगी भीगी मिट्टी की महक
उपवन में पक्षी रहे हैं चहक
इंद्र धनुष की छटा निराली
लहराती है मेरी जुल्फों काली
बारिश का मौसम सबसे प्यारा
मनमोहक है न्यारा न्यारा

— आरती शर्मा (आरू)

आरती शर्मा (आरू)

मानिकपुर ( उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी एस सी

One thought on “बारिश

  • चंचल जैन

    बहुत मनभावन रचना।सादर

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