कविता

आओ, पर्यावरण मित्र बनें

आओ,पर्यावरण मित्र बनें
प्रकृति पूजन का प्रण करें।

हरीभरी वसुंधरा,
महकते फूल,
चहकते पंछी
गुनगुनाते भंवरे,
तितलियां रंगरंगिली,
अनुपम सुंदर सजे रंगोली,
खिला खिला घर-आँगन महके,
हर गुलशन गुलजार रहें,
प्रकृति पूजन का प्रण करें,

आओ,पर्यावरण मित्र बनें।

नीलाभ गगन,

पुलकित बहार,
सुरभित पवन,
हर्षित कण कण,
मखमली धरा,
घर घर नवपल्लव खिले,
झूमे,लहराए पात पात,
फूल खिले डाल डाल,
धरा हरीभरी,सुशोभित रहे,
आओ,पर्यावरण मित्र बने।

उत्तुंग विशाल परबत,
ऊंचे-ऊंचे वृक्ष मनोहर,
फले,फुले वन औ जंगल,

झर-झर झरते निर्झर,
चहुँ ओर हरीतिमा सजे,
कल-कल बहे निर्मल जलधारा
बूंद-बूंद से पाये जीवन,
बुझे प्यास,तृप्त तन-मन,
धरती मां का आँचल लहरे,
आओ,पर्यावरण मित्र बने।

गंदा पानी,प्लास्टिक,कचरा,
आद्योगिक इकाई से
निकलता काला धुंआ,
दूषित पानी,जहरीली हवा,
बचानी हो मानव जिंदगानी
वृक्षों से सांसो का इंतजाम करे,
नीला गगन,उन्मुक्त पवन,
प्रकृति से मिट जाए प्रदूषण,
नादानियों से हम तौबा करे,
आओ,पर्यावरण मित्र बने।

चेते,समझे,करे संकल्प,
प्रकृति से ना करे खिलवाड़,
शुकराना,धन्यवाद,
आभार,अभिवादन,
पर्यावरण का करे सम्मान करे
सुखदाता,जीवनदाता,
प्राणदाता,अन्नदाता,
विधाता का वरदान,
प्रकृति को हम नित नेम सहेजे,
धरती का हरियाला रंग निखरे,
आओ,पर्यावरण मित्र बनें।

हर कली,हर फूल खिले,
हर जीव सदैव सुरक्षित रहे,
हर नवांकुर सुंदर पौध बने,
हर दिल प्रकृतिप्रेमी बने,
धरती माँ मुस्कुराये खिल खिल,
रुनझुन रुनझुन बूंदों की सरगम,
छमछम छमछम बरखा बहार,
ना आये बाढ़,आंधी,तूफान,
कुदरत को न आये क्रोध,
खुशिया ही खुशियां हो चारो ओर,
प्रकृति का सुंदर श्रृंगार करे,
आओ,पर्यावरण मित्र बनें।
प्रकृति पूजन का प्रण करें।

— चंचल जैन 

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८