कविता – प्रकृति की चेतावनी
हे मनुष्य इतना जान ले अब ईश्वर को पहचान ले
क्यों मूख बना क्यों अंध बना अब तू ये ज्ञान ले
जो मच रहा हाहाकार यहाँ तूने किया वोही कर्म है
मानव होके मानव काटा बोल क्या तेरा यह धर्म है
दिया प्रकृति ने तुझे तूने उसका दुरूपयोग किया
धर्म त्याग संस्कार त्याग तूने मुर्ख सिर्फ भोग किया
जो मात तुल्य थी गौ हमारी तूने दो हिस्सों में बांटा
जो देता ओक्सिजन वृक्ष यहाँ उसी को तूने काटा
दिये कहीं संकेत तुझे लेकिन तू बड़ा अभिमानी है
तोड़ निकाल इसका तू अब कितना तू विज्ञानी है
ज्ञान तेरा विज्ञान तेरा देख सब यहाँ लाचार हुए
प्रकृति के आगें सभी बुद्धि शस्त्र पोले हथियार हुए
अब भी वक्त है जाग जा चेतना को धारण कर
दंभ का त्याग कर खुद को प्रकृति को समर्पण कर
मैं पाप तेरे क्षमा करूँ अब न करना ऐसी गलती
आखिर चेतावनी है तेरे कर्मों से धरा है चलती
प्रकृति को हे मानव अब तू सर्वशक्तिमान मान ले
हे मनुष्य इतना जाल ले, अब ईश्वर को पहचान ले
आरती शर्मा ( आरू )
मानिकपुर( उत्तर प्रदेश)