गीता विजय उद्घोष
कृष्ण की गीता पुरानी हो गई है, या कि लोगों की समझ कमजोर है। शस्त्र एवं शास्त्र दोनों हैं जरूरी,
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Read Moreहम किसी पर अपनी मामूली सम्पत्ति तक नहीं छोड़ते और अनमोल बच्चे छोड़ देते हैं। है न आश्चर्यजनक! लेकिन सच
Read Moreदुकान और पकवान दोनों मानव से जुड़ी अति प्राचीन काल से सतत चलने वाली आवश्यकताएँ हैं। दुकान पर माँग –
Read Moreकल्पना हकीकत से अधिक आकर्षक होती है। कल्पना हकीकत से अधिक दुखदायी भी होती है। कल्पना चूँकि कल्पना है, हकीकत
Read Moreसूरज को झुठलाने वाले जुगनू बन इठलाने वाले सुन, नन्हें तारों की महफ़िल से यह दुनिया बहुत बड़ी है सूरज-ऊष्मा
Read Moreयह निर्विवाद सिद्ध है कि साहित्य समाज का दर्पण है किन्तु इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि साहित्य
Read Moreहम मानसिक रूप से आज भी गुलाम हैं और इस गुलामी को बनाये रखने में हमारी असफल शिक्षा व्यवस्था की
Read Moreछठ पर्व का समय चल रहा है। हम सभी जानते हैं कि यह संयुक्त पर्व दीपावली के उपरान्त चतुर्थी से
Read Moreसाहित्य को समाज का दर्पण होना चाहिए अर्थात् समाज के चेहरे को हूबहू दिखाने के सामर्थ्य से सम्पन्न। सिर्फ इतना
Read Moreराजाओं – महाराजाओं के समय की बातें अलग थीं। उस समय हर राजा की प्रजा होती थी हजारों….लाखों….। जिस राजा
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