सामाजिक

कल्पना को कल्पना ही रहने दो

कल्पना हकीकत से अधिक आकर्षक होती है। कल्पना हकीकत से अधिक दुखदायी भी होती है। कल्पना चूँकि कल्पना है, हकीकत नहीं, इसलिए हकीकत से अधिक प्रभावशाली होती है, बहुत असरकारक होती है। तह पता होते हुए भी कि यह मात्र कल्पना है, फिर भी हर्ष या विषाद की गंगा बहाने में सक्षम होती है। हम धड़लले से स्वर्ग की तक कल्पना कर लेते हैं। बहत्तर हूरों से नजरें मिला लेते हैं। बैतरणी की यातना तक पहुँच कर दर्द से चिहुक उठते हैं। जब हम पढ़ते हैं कि राणा प्रताप को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं तो हम काँप उठते हैं। किसी भी ठोकर से ठोकर की कल्पना बड़ी होती है।

इसके लिए संभव से असंभव तक कुछ भी असंभव नहीं होता। तभी तो यह कल्पना है वरना हकीकत की सीमाएँ इसे जकड़ लेतीं। इसे खुरदुरा बना डालतीं। घिसा-पिटा बना देतीं। इतना ही नहीं बल्कि यथार्थ इसके आभासी पंख कुतर डालते। इसको भी सुगम्य और अगम्य का बोध होता। इसे भी असल टार्गेट और टार्गेट की कल्पना का फर्क दिखता। किंतु इतनी टेंशन यह क्यों ले! स्वयं के भीतर विकृति क्यों उपजने दे! समय से पूर्व क्यों चिंता की चिता में चितान पड़े।

यह मत भूलो कि हकीकत को जाँच- परख से गुजारते हो, गुजारो, चाहो तो गुजरने भी दो। उसके साथ जो कर सकते हो, करो। अपनाओ या भगाओ। पर कल्पना को मत बाँधो, स्वछंद रहने दो। कल्पना को कल्पना ही रहने दो।

— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन