मौन का बोझ
अपने ही भीतर कितना ढोता है मन तरह-तरह की बातें और उससे उभरते परिदृश्यों की परिकल्पना को यादों की पगडंडियों
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Read Moreसुनो ! अगर तुम न मिलते तो मैं न होती और ना ही मेरी कविताएं…… हाँ सच ! जबसे आए
Read Moreसमझ नहीं आ रहा कहां से लिखना शुरू करूँ अक्सर लम्बा लिखने से जी चुराती रही हूं मैं, पर अगर
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