कविता

आंखें….

बड़ी बेकरार थी आंखें
तेरे दीदार की प्यासी… बेखबर
यार की तस्वीर वर्षों से बसाए
इन्तेजार में थी आँखें

तुम जब दूर हुए मुझसे
तन्हाई में अकेले
जार-जार रोईं थीं
ये बेजुबान आंखें

मूक थीं, आंखों में ही
सूख गए आंसू
दिन बीतते गए
अब तो ये पथरा सी गईं

बना के बांध इक…
सैलाब को थाम गई
वक़्त के थपेड़ो से टकरा के
जिंदगी के लहरों में समा गई

नए सपने कोई इनमें
अब सजाऊं कैसे
तुमसे मिलके हुई
ये बेवफा आंखें….

*बबली सिन्हा

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