व्यंग्य – खूँटाचार संहिता
आज हम सभी ‘खूँटा- युग’ में साँस ले रहे हैं। प्रत्येक किसी न किसी खूँटे से बँधा हुआ है।जैसे रसायन
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Read Moreसज गई हैं दुकानें ,बाजार गर्म है।बिकेगी उसी की सौदा, जिसका जैसा भी कर्म है।तो देवियो!सज्जनो!बहनो! औऱ भाइयो ! ;
Read Moreग्राम्यांचल में वहाँ के स्थानीय विवाद निपटाने के लिए किसी मौजे की एक ग्राम -पंचायत होती है।एक मौजे में एक
Read Moreआँखों – आँखों का ये खेल निराला है। निज अंतर का मंत्र तंत्र में डाला है।। देखा पहली बार नहीं
Read Moreबड़ी पुरानी राम – कहानी। नगर अयोध्या सीता रानी।। पिता राम के दशरथ राजा। बजता धीर- वीर का बाजा।। कौशल्या
Read Moreगरम पराँठा बथुए वाला। जाड़े में दे स्वाद निराला।। गहरा हरा संग में धनिया। खाती अम्मा खाती चनिया।। मिर्च चटपटी
Read Moreमन के दर्पण में झाँक, काँच में क्या पाएगा ! मत लीप- पोत कर सजा, रूप यह मिट जाएगा।। ये
Read Moreबार – बार उस ओर लौटता, जिससे बाहर आया है। प्रत्यावर्तन की अति अद्भुत, जीवन की शुभ माया है।। धन
Read Moreदेश के इतिहास में एक समय ऐसा भी था,जो घोषित चारण – युग था। इसके विपरीत आज अघोषित चारण-युग है।
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