हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – खूँटाचार संहिता

आज हम सभी ‘खूँटा- युग’ में साँस ले रहे हैं। प्रत्येक किसी न किसी खूँटे से बँधा हुआ है।जैसे रसायन विज्ञान में किसी पदार्थ की भौतिक रूप से पहचान करने के लिए देखकर (आँखों से) ,छूकर( त्वचा या कर स्पर्श से),सूँघकर (घ्राण से) औऱ रस अथवा स्वाद लेकर (रसना से) परीक्षा की जाती है। उसी प्रकार इन खूँटों की भौतिक परीक्षा का भी प्राविधान है।पहले इन्हें दोनों आँखों से भलीभाँति देखना पड़ता है (यदि आँख एक भी हो ,तो भी चलेगा)।इससे खूँटे का रँग,रूप,आकार आदि का पता चल जाता है। यदि आँखों /आँख से देखने पर भी पूरी जानकारी न हो ,तो इन्हें हाथ से या जिस प्रकार से भी छू सकें ; छूना पड़ता है। इससे खूँटे की कोमलता- कठोरता,चिकनाहट- खुरदरापन, शीतलता – उष्णता ,गड्ढायुक्त – गड्ढामुक्त आदि तथ्यों का ज्ञान हो जाता है।देखने और छूने के बाद बारी आती है खूँटे को अपनी घ्राणेन्द्रिय से सूँघने की। इससे उसकी सुगंध किंवा दुर्गंध का अभिज्ञान हो जाता है । साथ ही यह भी पता चल जाता है कि उसकी उस गंध का प्रसार कहाँ तक है।यह उसके विस्तार की परीक्षा है। अब शेष रहता है ;खूँटे को चखना । रसना से स्वाद का परीक्षण हो लेता है।खूँटे की मधुरता ,कड़वाहट, तिक्तता, आदि षटरस का बोध कर लिया जाता है।

खूँटे के चतुर्विध परीक्षणोपरांत उसके चयन /बंधन की बात सामने आती है। यदि वह खूँटे से बँधने वाले पगहे से जुड़ने का निर्णय लेता है ,तो ‘जुडोत्सव’ का शुभ मुहूर्त, स्थान आदि का निश्चय करके जुड़ लिया जाता है। इतने विधि -विधान के उपरांत ही कोई खूँटे से बँधता है ।

इन विशिष्ट खूँटों का स्वरूप स्थूल खूँटों की तरह नहीं होता। स्थूल खूँटे एक ही स्थान पर जड़ और स्थिर होते हैं।इसके विपरीत ये विशिष्ट खूँटे चलायमान, उड़नशील औऱ गतिमान होते हैं। ये बात अलग है कि इन सबकी गति एक समान नहीं होती।अलग -अलग गति ,मति और रति से सुशोभित ये खूँटे अपने हर तौर – तरीके में भी विशिष्ट ही होते हैं।ऊँचे,लंबे ,ठिगने,मोटे, चिकने, खुरदरे , ठंडे ,गरम आदि बहु रूप और आकार प्रकार के होते हैं।खूँटों के द्वारा सौदेबाज़ी भी की जाती है और बँधने वालों को खरीदा जाता है , बेचा नहीं जाता ,क्योंकि इनसे उनके आकार – प्रकार का रूप हलका- भारी हो सकता है।कोई भी खूँटा कभी हलका या पतला नहीं होना चाहता।सर्वत्र चलायमान ये खूँटे सदैव जागरूक और जागृत अवस्था में विचरण करते हुए रहते हैं।खूँटों ने कभी रुकना और थमना नहीं सीखा।उनके गौरव औऱ गुरूर का यही सबसे बड़ा कारण है।

अब आप यह भी पूछेंगे कि ऐसा कौन है , जो किसी खूँटे से नहीं बँधा है? जहाँ तक मेरी शोध – दृष्टि जाती है , हम सभी खूँटों से बँधे हुए मदमत्त हैं। कोई खूँटों में व्यस्त है ,कोई मस्त है और कोई- कोई पस्त भी है।किसी -किसी को खूँटे ध्वस्त भी किए दे रहे हैं। पर मजबूरी है उनकी कि वे उनसे बँधकर भी आश्वस्त हैं। जाएँ तो जाएँ कहाँ। उनके लिए कहीं भी भाड़ में शीतलता नहीं हैं। कुछ पात्रों को जीवन भर खूँटा बदलने में ही बीत जाता है। यहाँ तक कि उनका सब कुछ रीत जाता है।

कोई पत्नी के खूँटे से बंधा है ,कोई पत्नी पति रूपी खूँटे के चारों ओर परिक्रमा कर रही है।कोई नौकरी या व्यवसाय के खूँटे में कोल्हू का बैल बना हुआ है।खूँटे को छोड़े तो इधर खाई उधर कुँआ है। कोई दलों के दलदल में आकंठ धंसा है।उसके लिए वहीं मजा ही मजा है।घुटन होने पर खूँटा छोड़ने को स्वतंत्र है। पुराने खूँटे को दस बीस गालियाँ सुनाकर , पचास – सौ कमियाँ गिनाकर पगहा तोड़ देता है औऱ रात को सोता है किसी छोटे से कक्ष में सवेरा किसी फाइव स्टार में होता है।गले का पगहा भी रँग बदला हुआ दूसरे रँग में नया होता है। इतना बहुत ही अच्छा कानून है कि कोई भी कभी भी पगहा तोड़ने के लिए स्वतंत्र है , लेकिन वह इतना मूर्ख भी नहीं कि असमय ही खूँटा बदल ले। पूरा -पूरा स्वाद लेने के बाद ही मति परिवर्तन करता है। इसका भी एक विशेष मौसम होता है। पाँच वर्ष में रस लोभी भौंरे की तरह वह रँग ,रस ,वेष, केश, परिवेश सब बदल लेता है। दूसरे खूँटे में पनाह ले लेता है। जिस पुराने खूँटे के गुणगान करते हुए थकता नहीं था , उसके नन्हें से छिद्रों को एक अँगुली से नहीं दोनों हाथों की दसों अंगुलियों से चौड़ा कर भाड़ बना देता है। कहता था जिनको गधा औऱ सुअर ;उन्हीं गधा – सुअरों को बाप के आसन पर सजा देता है।इस माँस की जीभ का भी क्या भरोसा ? चक्कर खा ही जाती है। इस खूँटे से निकल उधर लिपट जाती है। खूँटा वही भला , जहाँ मिले माल मलाई। इसी में तो है बँधने वाले पात्र की भलाई।जमुना गए तो जमुनादास,गंगा गए तो गंगादास। जहाँ आस ,वहीं चले साँस। मिटता है अँधेरा फैलता है प्रकाश।

खूँटों की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति है।इस संस्कृति के बीच अपने को बनाए रखना, खट्टे – मीठे स्वाद चखना,सिर से लेकर टखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।जो स्ववश या परवश हम सबको शिरोधार्य है। मानने लगे हैं लोग कि आज जीने के लिए यह भी अनिवार्य है।खंभों से जुड़ने ,सटने ,चिपकने तथा उन्हें लपकने वालों की कई श्रेणियाँ हैं।चमचे,भक्त, पिछलग्गू, नेता, राजनेता औऱ उनसे भी ऊपर तंत्री आदि। सबका एक ही परिवार है। कुछ के हाथों में तो कुछ के गले में हार औऱ हाथों उपहार हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि सावन है ,भादों है या क्वार है ! ये सब तो अब सदाबहार है।फूलों की खुशबू औऱ इत्र की फुहार है।कभी हेलीकॉप्टर है तो कभी कार है। गली -गली ,शहर -शहर खूँटों की भरमार है।इन सभी खूँटों को अपने चहेतों/चहेतियों से अति प्यार है।खूँटा-संस्कृति का भी अपना एक खुमार है।

आइए ! हम सभी खूँटों की संख्या को घटाएँ। अपनी – अपनी महत्त्वाकांक्षा को को न छटपटाएँ ।देश का भी कभी भला सोचें।सोचें ही नहीं, करें भी। क्योंकि देश है ,तभी हम हैं। अन्यथा तैयार उधर बम हैं।ये कहने से कुछ नहीं होगा कि हम क्या किसी से कम हैं ? ईंट का उत्तर पत्थर से देना होगा। तभी हमें इस को अपना कहना होगा। इन खूँटों की क्या ?इन्हें तो जमीन चाहिए। उसे तो भक्त अपने सिर पर भी गाढ़ लेंगें। पर इस देश को बँटवारे की आग में पसार देंगे।हम सब एक हो जाएँ औऱ एक मजबूत भारत का निर्माण कर जाएँ ,ताकि हमारी आगामी पीढ़ियाँ हमारे गुण गाएँ।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040