व्यंग्य – गधे पँजीरी खाँय
जब सब कुछ युग के अनुरूप चल रहा हो,तो सब कुछ ठीक-ठाक ही मानना पड़ेगा।अब यह तो नहीं कहा जा
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Read Moreघरनी की दोमृदुल कलाईखनकें चूड़ी बारम्बार। पग में पायलकमर करधनीहाथों में संगीत उभार।कहती हैं क्याहरी चूड़ियाँखोलो साजन बन्द किवार।। समझें
Read Moreपहले ये कहावत धोबी के कुत्ते के लिए प्रसिद्ध थी कि ‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट का।’ किन्तु
Read Moreशीतकाल सौगातें लाया।ठंडी ऋतु का मौसम भाया।।छोटे दिन की लंबी रातें।अगियाने पर होतीं बातें।।गरम रजाई ने गरमाया।शीतकाल सौगातें लाया।।गज़क तिलकुटी
Read Moreयह सत्य है कि बीता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता।यह बात मुझे ही लगती है कि अतीत वर्तमान
Read Moreयुग -युग से चली आ रही प्रथाओं और परंपराओं को यों ही नहीं भुलाया जा सकता।ये प्रथाएँ और परंपराएं आदमी
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