गीत – शेष न रहती एक
जितने साँचे उतनी प्रतिमाशेष न रहती एक। कुंभकार है अद्भुत सृष्टासाँचे गढ़े नवीन।माटी भर -भर बना रहा हैलघु,पतली या पीन।।
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Read Moreहिंदी से हमहम से हिंदीहम नहीं किसी भाषा से कम। माता जिसकीसंस्कृत पावनतन देवनागरी का प्यारा।जननी ने दीघोटी निज पयबहती
Read Moreहमारी मनुष्य जाति की प्रायः तीन अवस्थाएँ प्रचलन में हैं :1.बैठना 2.लेटना और 3.खड़े रहना। एक और चौथी अवस्था भी
Read Moreजी महोदय! जी मान्यवर!!यह मौसम तो आम का ही है।किंतु आम के मौसम में टमाटर की चर्चा ही खास है।आम
Read Moreमुर्गी अंडा देती रोज,मुर्गा बाँग लगाता क्यों? मोर शुभंकर पक्षी है,किसको नाच रिझाता क्यों? साँप रेंग कर चलता है,पाँव न
Read Moreअम्मा चलें आज अमराई।झूलें झूला बहना – भाई।। नभ में घटा उमड़कर आई।हवा चली ठंडी पुरवाई।।यहाँ वहाँ छाया भी छाई।अम्मा
Read Moreपीहर आई नारि नवेली सावन आया द्वार।अमराई में धूम मचातीं उर में खिलते फूल।झूला डाला तरु रसाल पर रहीं गोरियाँ
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