हास्य व्यंग्य

घर का न घाट का

पहले ये कहावत धोबी के कुत्ते के लिए प्रसिद्ध थी कि ‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट का।’ किन्तु अब ये कहावत भले ही प्रसिद्ध न हुई हो पर आदमी पर शत प्रतिशत लागू हो रही है। यदि आप इस तथ्य को भली भाँति समझ लेंगे तो इसकी ख्याति भी बढ़ जाएगी।हम और आप जैसे लोग ही इसकी ख्याति को विस्तार भी देने लगेंगे। यदि आपको मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा हो तो घर से बाहर निकल कर देख लीजिए।

आप आदमी के जन्म से ही ले लीजिए। पहले आदमी औरत का बच्चा अर्थात हम और आप जैसे प्राणी कहाँ पैदा होते थे?आप कहेंगे कि घर में।अपने घर में हम सब का जन्म होता था ,जिसे सौरी घर या प्रसव कक्ष कहते थे। और नए जमाने के बच्चे कहाँ और कैसे पैदा हो रहे हैं ? आप कहेंगे :नर्सिंग होम में,हॉस्पिटल में, बस में ,ट्रेन में ,हवाई जहाज में और कभी – कभी तो अस्पताल के गेट पर , सड़क पर या रिक्शे में या ऑटों रिक्शे में । यदि प्रसूता या उसके पति का स्तर ऊँचा हुआ तो कार या एम्बुलेंस में भी पैदा होने का जुगाड़ कर लिया जाता है। कुल मिलाकर एक शब्द में कहें कि तब बच्चे घर में पैदा होते थे और अब घर के बाहर पैदा हो रहे हैं।
जब पैदा हुए हैं तो कभी न कभी बीमार भी होंगे ही। पहले बीमार होने पर दादी माँ के नुस्खे या हकीम वैद्यों के चूरन चटनी ही हमें नीरोग करने के लिए पर्याप्त थे।और दो चार दिन गर्म पानी पीकर या लंघन करके अथवा रसोई घर के लोंग, इलायची,जीरा,काला नमक,हींग, मीठा तेल, देशी घी,दाल चीनी आदि से ही ठीक हो जाया करते थे। अब जब आदमी के स्तर में इज़ाफ़ा हुआ तो घर के ये सभी इंतजाम निरर्थक हो गए और सीधे अस्पताल में भर्ती करना अनिवार्य हो गया।अर्थात इलाज भी घर से बाहर। अब के पैदा होने वाली संतति के लिए घर भी किसी काम नहीं आया।वे बाहर से ही उपचार लेकर स्वस्थ होते हैं।
जो इस धरती पर आया है ,उसे जाना भी है। यह एक अनिवार्य सत्य है। यह सत्य तब भी सत्य था और आज भी सत्य ही है।तब के और अब के जैसे आने में अंतर आया है ,वही अंतर जाने में भी आ गया है। पहले लोग घर की चार दीवारी में चारपाई पर पड़े पड़े ही अंतिम साँस लेकर प्रस्थान कर जाते थे। किंतु आजकल के समय में दुनिया से विदा होने के तरीकों और स्थानों में भी बड़ा बदलाव आया है।अब तो अस्पताल में इलाज कराते -कराते या तो ऑपरेशन टेबिल पर आखिरी साँस छोड़ देते हैं अथवा भर्ती होने के बाद किसी सफेद चादर से आवृत बैड पर।कोई सड़क पर दुर्घटना में चला जाता है तो कोई आत्मघात कर विदा हो लेता है। विष ,आग,रेल की पटरी आदि अनेक ऐसे साधन या उपसाधन हैं ,जो घर की दीवारों से बाहर के ही हैं।
जन्म और अवसान के बाद किंचित चर्चा इन दोनों के बीच के पलों की भी कर लें तो समीचीन होगा। मनुष्य के जीवन का एक सुनहरा काल विवाह संस्कार का माना जाता है। पहले विवाह भी घर पर ही चार और एक पाँच बाँस का मंडप सजा कर अग्नि के सात फेरे ले लिए जाते थे। बस हो गया विवाह। बारात किसी खेत में या किसी बरगद,आम या नीम,शीशम के पेड़ के नीचे ,चौपाल आदि पर रोक दी जाती थी। और विवाह की सारी रस्में घर के अंदर ही सम्पन्न होती थीं।इसके विपरीत आजकल जमाना प्रदर्शन का अधिक और वास्तविकता का कम रह जाने से अलग बने हुए मैरिज होम , विवाह घरों ,गार्डनों, वाटिकाओं आदि में विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। अर्थात यह सब भी घर के बाहर ही होता है।
इस प्रकार आज के आदमी का सब कुछ घर से बाहर ही सम्पन्न हो रहा है।अब वह घर का रहा न घाट का।जीने से मरने तक का सारा इंतजाम घर से बाहर ही है। फिर ये घर किसके लिए ,किस काम के लिए हैं।जब घर , घर ही नहीं रहे तो वे फ्लेट,मकान या किसी अन्य रूप में परिवर्धित हो गए। घर की संस्कृति मर चुकी है। इसीलिए अब लोगों में घर के प्रति जो आत्मीयता का भाव पहले होता था ,अब नहीं रहा है। घर मकान हो गए।आदमी, आदमी न रहा ,फ्लैट हो गया !अपने अहं में ग्लैड हो गया।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040