सिंघाड़ा
ताल – तलैया में उपजाया।
जल – फल नाम सिंघाड़ा पाया।।
जल- तल पर हरियाली छाए।
हरे सिघाड़े से भर जाए।।
ऊपर बेल सिंघाड़े नीचे।
ताल नीर का उनको सींचे।।
रूप तिकोना सींगों वाला।
गूदा श्वेत भरा मधु डाला।।
व्रत में सभी सिंघाड़ा खाते।
हम हलुआ झट चट कर जाते।।
लगा ढेर ठेलों पर बिकता।
कोई लाल – लाल भी दिखता।।
उबले हुए सिघाड़े खाते।
नया स्वाद रसना पर लाते।।
माँ जब तुम बजार को जाना।
हरे सिंघाड़े ताजी लाना।।
खाएँ हम भरपेट सिंघाड़ा।
आया ‘शुभम्’ देख लो जाड़ा।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’