चाहतें
चाहतें कई रहीं जिंदगी में मिला उतना ही जितना नसीब था लेकिन नसीब के सहारे बैठा ही नहीं रहा लगा
Read Moreकुछ कुछ भूलने सा लगा हूँ स्मृति भी धूमिल सी होने लगी है उम्र की वजह है या दिन दुनियां
Read Moreन खुला अम्बर न खुली छत है चाँद मुस्कुरा रहा फेंक रहा अपनी चांदनी बरसा रहा अमृत कैसे पाऊं यह
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