मुक्तक
१) वक़्त कहाँ लगता है, दूरियां बढ़ाने में । ज़िंदगी गुज़र जाती है, फ़ासले मिटाने में ।। नफ़रत सभी समझते
Read Moreकुछ मुक्तक १) कोरोना प्राण घातक है, चलो यह जानते हैं सब । दवा कोई नहीं इसकी, चलो यह मानते
Read More१) जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं । करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती
Read Moreघर की बिटिया, रही सिसकती, हैं मंत्री, नेता मस्त यहां। नोच रहे हैं जिस्म भेड़िए, सब के सब हैं व्यस्त
Read Moreयह जो तस्वीरें मैं यादों के रूप में, हर पल दिल से संभालती रही हूं। जख्मों को मैं मिटाती नहीं
Read Moreमैं मंजिल हूँ तुम्हारी,ये सच है, इसे तुम मान लो, मैं पहली और आखरी ख्वाइश हूँ,तुम्हारी,जान लो, मैं तुम्हारी ताकत
Read Moreतू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। झूठे तेरे वादे झूठे, फिर भी तू सच्चा
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