कविता
सौंधी सी खुशबू आई है जरूर मेरे गाँव में बारिश आई है ! नदी कुछ उफान पर है जरूर किसी
Read Moreतुम्हें सोचती हूँ तो गुम हो जाती हूं , तेरी परछाई सी बन जाती हूं गजलें लिखती हूँ गीत गुनगुनाती
Read Moreमेरे गाँव से दूसरे गाँव जाने के लिए सिर्फ एक पगडण्डी ही थी | छत या चौबारे में खड़ी अमिता
Read Moreये दरख़्त , येे चौखट , ये गलियां, कुछ भी ना भूला ये परिंदा आवारा !! वक्त की धूल ने
Read More“क्या कहा तूने — पैसे नहीं देगी ? क्यों ? अपने देहज में लायी थी क्या ? खाती है मेरे
Read Moreकितने शब्द बिखरे पड़े चारो और …. लेकिन सब उलझे हुऐ, किसी शब्द का अर्थ नहीं , तो कही किसी
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