कविता

झूठ और सच

झूठ सच का व्यापार कर बैठी
सच बिक ना पाया , झूठ रुक ना पाया
हर किसी को झूठ चाहिये था
झूठ की ख़ुशी पल की थी ,पर सच पर भारी थी
ख़्वाब सपने सब झूठ की बदौलत है !
सच तो तपती राह में बेजुबान सा खड़ा है !
कथनी करनी में फर्क देखा है !
लोगो को सच बोलते कब सुना है !
आज की खोकली ज़िन्दगी -सच पे कहाँ चलती है !
सच का नारा लगाने वालो का क्या ?
कभी झूठ सा नाता रहा नही !
ज़िन्दगी की कश्ती कहाँ बिन पतवार चलती है
तभी तो सरे आम झूठ की तू तू चलती है !!

डॉली अग्रवाल

पता - गुड़गांव ईमेल - dollyaggarwal76@gmail. com