Author: गंगा गैड़ा

कविता

मैं भी डरने लगी हूँ

निर्भया,कैसे लिखूँ तुम्हारी कराह…..कैसे लिखूँ तुम्हारी पीड़ा तुम्हारी चीख़………तुम्हारी पुकार….. ह्रदय को चीर जाता है तुम्हारा द्वन्द…..एक साल हो गया ना आज क्या जानना

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