अहंकारों की अनंत आँधी में,
अहंकारों की अनंत आँधी में, विचरती विकारों की व्याधि में; उड़े कितने ही व्यथाएँ पाते, स्थिति अपनी कहाँ लख पाते
Read Moreअहंकारों की अनंत आँधी में, विचरती विकारों की व्याधि में; उड़े कितने ही व्यथाएँ पाते, स्थिति अपनी कहाँ लख पाते
Read Moreखेलने खाने दो उनको, टहल कर आने दो उनको; ज़रा गुम जाने दो उनको, ढूँढ ख़ुद आने दो उनको !
Read Moreआए हैं अलग रहते थलग, जाएँगे विलग; सहचर हैं रहे सूक्ष्म काल, संचरी सुमग ! सौंदर्यवान सुभग धरा, रहत हमरे
Read Moreशिव सरिस नृत्य करत रहत, निर्भय योगी; सद्-विप्र सहज जगत फुरत, पल पल भोगी ! भव प्रीति लखत नयन मेलि,
Read Moreसुनके ज़्यादा भी करोगे तुम क्या, ध्वनि कितनी विचित्र सारे जहान; भला ना सुनना आवाज़ें सब ही, चहते विश्राम कर्ण-पट देही ! सुनाया सुन लिया बहुत कुछ ही, सुनो अब भूमा तरंग ॐ मही; उसमें पा जाओगे नाद सब ही, गौण होएँगे सभी स्वर तब ही ! राग भ्रमरा का समझ आएगा, गुनगुना ब्रह्म भाव भाएगा; सोच हर हिय का ध्यान धाएगा, कान कुछ करना फिर न चाहेगा ! जो भी कर रही सृष्टि करने दो, सुन रहे उनको अभी सुनने दो; सुनो तुम उनकी सुने उनको जो, सुनाओ उनको लखे उनको जो ! गूँज जब उनकी सुनो लो थिरकन, बिखेरो सुर की लहर फुरके सुमन; बना ‘मधु’ इन्द्रियों को उर की जुवान, रास लीला में रमे ब्रज अँगना !
Read Moreभगवा दिया है भगवा किया, तुमने कोरोना; हर हिय को सिखा कुछ है दिया, प्यार कराना! करने लगे हैं नमस्कार,
Read Moreकाल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो; भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! कितने आए कितने गए,
Read Moreहिम आच्छादित धरती रहते, हिय वसंत हम कितने देखे ! भावों से भास्वर जगती पै, आयामों के पहरे निरखे !
Read Moreभव भय से मुक्त अनासक्त, विचरि जो पाबत; बाधा औ व्याधि पार करत, स्मित रहबत ! वह झँझावात झेल जात,
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