कविता

कोरोना

संसार कितना बदल दिया, तुमने कोरोना;
हर ज़िंदगी को बना दिया, तुमने खिलौना!

रोका है आना जाना, मिलना और मिलाना;
संयत किया है खाना पीना और खिलाना!
आयोजनों को करके ख़त्म, शून्य झँकाना;
बाहर की दुनियाँ देखे बिना, अन्तस तकना!

तज तामसी अहार, गति सात्विक वरना;
भय वश बदलना वृत्ति, प्रकृति महिमा समझना!
लौटा के तनिक पीछे, सुसंस्कृति को तकाना;
‘मधु’ के प्रभु को आता, जीव जग को चलाना!

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’