मधुगीति – पतझड़ में जो पत्ते देखे
पतझड़ में जो पत्ते देखे, कहाँ समझ जग जन थे पाए; रंग बिरंगे रूप देख के, कुछ सोचे वे थे
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Read Moreतुम सुर में बसी उनकी झलक, लख लिया करो; आओ न आओ उनकी ग़ज़ल, गा लिया करो ! दरम्यान उनके
Read Moreनेत्र जब नवजात का झाँका किया, शिशु जब था समय को समझा किया पात्र की जब विविधता भाँपा किया, देश
Read Moreतत्व रूप में हिन्दी व अन्य सभी मातृ भाषाएँ भारत की ही नहीं विश्व भर की सम्पत्ति, धरोहर व अमानत
Read Moreप्रभु कृपा से अभिभूत सब, आनन्द अद्भुत पा रहे; मिल परस्पर उनसे मिले, आशीष उनका भा रहे ! रचते वही
Read Moreआँसुओं में जब कोई मुझको लखा, दास्तानों का उदधि वरवश चखा; दीनता की मम हदों को वह तका, क्षुद्रता की
Read Moreमेरी सत्ता लगे कभी पत्ता, जाती उड़ कभी वही अलबत्ता; लखे खद्योत कभी द्योति तके, ज्योति संश्लेत कभी स्रोत लखे
Read Moreखोए ख़ुद में कभी कवि होते, भाव अपने में विचरते रहते; किसी आयाम और ही जाते, वहाँ से देखे वे
Read Moreमैं विपुल आयाम चल कर, बिना व्यवधानों विचरता; चर अचर संचार कर कर, संचरित प्रकृति सुहाता ! कृति किए जो
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