दैवीय रूप नारी
जो प्रेमशक्ति की मायावी ,जाया बनकर उतरी जग में। आह्लाद बढ़ाती हुई बढ़ी , बनकर छाया छतरी मग में।। बलिदान त्याग
Read Moreजो प्रेमशक्ति की मायावी ,जाया बनकर उतरी जग में। आह्लाद बढ़ाती हुई बढ़ी , बनकर छाया छतरी मग में।। बलिदान त्याग
Read Moreमद्धिम कुहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी उनके स्वागत में भर उड़ान आकाश भेदते कलरव से खग वंश
Read Moreहम उस युग के बेटे हैं जब, घर – घर घर होते थे। घर के मालिक भी हम ही, हम
Read Moreप.ज्योति कानपुरी जी की स्मृति में क्रान्तिकारी विचार मंच द्वारा स्थापित “ज्योति कलश” सम्मान से देश के वरिष्ठ कवि गिरेन्द्रसिंह
Read Moreप्यार भरी सौगात नहीं यह, कुदरत का अतिपात हुआ है । ओले बनकर धनहीनों के, ऊपर उल्कापात हुआ है।। फटे
Read Moreझाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है। है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी
Read Moreमिसरी सी मीठी हूक लिए पानी सी लिए रवानी है। है सुगम बोधिनी भावों की यह हिन्दी हिन्दुस्तानी है।। वेदों
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