समझो द्वारे पर है बसन्त
मद्धिम कुहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी उनके स्वागत में भर उड़ान आकाश भेदते कलरव से खग वंश
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Read Moreहम उस युग के बेटे हैं जब, घर – घर घर होते थे। घर के मालिक भी हम ही, हम
Read Moreप.ज्योति कानपुरी जी की स्मृति में क्रान्तिकारी विचार मंच द्वारा स्थापित “ज्योति कलश” सम्मान से देश के वरिष्ठ कवि गिरेन्द्रसिंह
Read Moreप्यार भरी सौगात नहीं यह, कुदरत का अतिपात हुआ है । ओले बनकर धनहीनों के, ऊपर उल्कापात हुआ है।। फटे
Read Moreझाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है। है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी
Read Moreमिसरी सी मीठी हूक लिए पानी सी लिए रवानी है। है सुगम बोधिनी भावों की यह हिन्दी हिन्दुस्तानी है।। वेदों
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