कुण्डली/छंद

कवित्त – पानी की बहार है

कहीं किलकार तो सवार है बुखार कहीं, हाहाकार बाढ़ का शिकार दस्तकार है।
रंगदार पानी का प्रहार पानीदार कहीं, लिए ललकार बंग बौछ पानीदार है।।
मूसलों सी धारदार आरपार सुधाधार, धुआँधार कहीं बूँदा बाँदी है फुहार है।
खार में कछार में कगार मँझधार में तो, हार घरबार द्वार पानी की बहार है।।
— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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