गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 09/02/2023 ग़ज़ल छोड़ चुकी है चार दिवारी। आगे बढ़ती अब की नारी। लगती है जब ज़र्ब करारी। दुश्मन माने तब ही हारी। Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 23/01/202323/01/2023 ग़ज़ल मशक्कत से रोज़ी कमाना सिखायें। सही राह बच्चों को हरदम बतायें। चलो आज फिर से नया घर बनायें। नये जोश Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 14/01/2023 ग़ज़ल एक आना उबाल ब़ाक़ी है। उससे करना सवाल बाकी है। बद ज़बां बात कह चुकाअपनी, सिर्फ़ होना वबाल बाकी है। Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 21/12/2022 ग़ज़ल उसके आने का शुरू जब सिलसिला हो जाएगा। नफ़रतों का ज़ख्म यारो फिर हरा हो जाएगा। मौत मस्ती से सूकूं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 17/12/2022 ग़ज़ल अस्ल होता वही है बड़ा आदमी। सबकी खातिर करे जो दुआ आदमी। तंग करता फिरे दायरा आदमी। हर समय सोचता Read More
राजनीति *हमीद कानपुरी 22/11/2022 भाषा संयम खोती राजनीति इस सत्य को कोई भी नकार नहीं सकता है कि जिस समाज की भाषा में सभ्यता होती है।उस समाज में Read More
मुक्तक/दोहा *हमीद कानपुरी 24/10/2022 दोहा अन्धकार रहता नहीं, पल भी एक समीप। जब तक जलता है कहीं,अदना सा भी दीप। — हमीद कानपुरी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 18/10/2022 ग़ज़ल ख़ुदा के नाम का चर्चा बहुत है। यक़ीनन राज़ ये गहरा बहुत है। समन्दर की नहीं चाहत हमें कुछ, हमारे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 07/10/2022 ग़ज़ल दौर नाज़ुक है तमाशे नहीं अच्छे लगते। अब हमें ढोल नगाड़े नहीं अच्छे लगते। हाथ में हर घड़ी रहते हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 28/09/2022 ग़ज़ल सलीक़े से थोड़ा संभल कर तो देखो। कभी रूप अपना बदल कर तो देखो। नहीं मिल रही है अगर कामयाबी, Read More