मुस्कुराना….रस्म – भर तो नहीं
मुस्कुराहट मे छुपी क्यों दिखती कभी तन्हाई भी | मुस्कुराना बस इक रस्म-भर तो नहीं होता | ना बाँधो सब्र
Read Moreमुस्कुराहट मे छुपी क्यों दिखती कभी तन्हाई भी | मुस्कुराना बस इक रस्म-भर तो नहीं होता | ना बाँधो सब्र
Read Moreजीना है मुझे…..हाँ जीना है मुझे भी …मुझे भी जीने दे | ना घोल ज़हर नफ़रतों का यूँ कि….. मुझे
Read Moreचलो एक खूबसूरत ग़ज़ल लिखते हैं | यूंही उलझे-सुलझे शामो सहर लिखते हैं | कहीं ज़िन्दगी की कोई असलियत लिखते
Read Moreहस्तरेखाओं को कभी -कभी ना मानने को जी करता है | जो किस्मत मे ना हो कभी उसे पाने को
Read Moreकहीं छुप – छुप के यूँही मुस्काता है कोई | खुल ना जाए राज़े उल्फत इसलिए चुप रहता है कोई
Read Moreरहमतों से आपकी बेखबर तो मैं नहीं हूँ | साहिब हो तुम मैं तो बस दास ही हूँ | चाहकर
Read Moreफिर वो सादे से लम्हें खोजता हूँ | जिनमें जीवन जीया खुल के वो बाते सोचता हूँ | बदल गया
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