मन
मन चंचल क्यों होता है | कभी हँसता कभी रोता है | कभी सपने आकाश छूने के | कभी धरती
Read Moreआँसुओ को आँखों से छलक जाने दो | ना छुपाओ आँखों मे उन्हें बह जाने दो | रह गए जो
Read Moreरात के आगोश मे चाँदनी सिमटती गई , चाँद सँग यूँही ठिठोली सी करती रही | आसमाँ को भी गुमाँ
Read Moreमुस्कुराहट मे छुपी क्यों दिखती कभी तन्हाई भी | मुस्कुराना बस इक रस्म-भर तो नहीं होता | ना बाँधो सब्र
Read Moreजीना है मुझे…..हाँ जीना है मुझे भी …मुझे भी जीने दे | ना घोल ज़हर नफ़रतों का यूँ कि….. मुझे
Read Moreचलो एक खूबसूरत ग़ज़ल लिखते हैं | यूंही उलझे-सुलझे शामो सहर लिखते हैं | कहीं ज़िन्दगी की कोई असलियत लिखते
Read Moreहस्तरेखाओं को कभी -कभी ना मानने को जी करता है | जो किस्मत मे ना हो कभी उसे पाने को
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