दोहा
युग – युग से है प्रेम की, देखो ये ही रीत | मिल ही जाये सब उसे ,मन सच्ची हो
Read Moreगरीब अब भी फुटपाथ पर सोता है| भूख से जाने कितनो का दम निकलता है | पर मेरा देश तो
Read Moreआँसुओ को आँखों से छलक जाने दो | ना छुपाओ आँखों मे उन्हें बह जाने दो | रह गए जो
Read Moreरात के आगोश मे चाँदनी सिमटती गई , चाँद सँग यूँही ठिठोली सी करती रही | आसमाँ को भी गुमाँ
Read Moreमुस्कुराहट मे छुपी क्यों दिखती कभी तन्हाई भी | मुस्कुराना बस इक रस्म-भर तो नहीं होता | ना बाँधो सब्र
Read Moreजीना है मुझे…..हाँ जीना है मुझे भी …मुझे भी जीने दे | ना घोल ज़हर नफ़रतों का यूँ कि….. मुझे
Read More