कतीब
तुम बिन – अंधेरें में डूबी हुई सी लगती हैं महफ़िल तुम्हारे कदम रखते ही जल उठते हैं कंदील
Read Moreमेरे ह्रदय में हैं जो कदा तुम वही रहती हो सदा खुलती हैं जब मेरी पलकें हर तरफ तुम
Read Moreवहाँ कोई नही था न भाई,न बहन न माता -पिता न ही कोई एक मित्र सब अकेले थे और मुझे
Read Moreबात यह है दरअसल तुम ही मेरी नज्म हो तुम ही मेरी कविता हो तुम ही हो मेरी ग़ज़ल तुम्हें
Read Moreएक कविता के बाद भी बची रह जाती है मेरे पास लिखने के लिए या फिर पढ़ने के लिए –
Read Moreतुम तक पहुँचने के लिए मैंने पूरा रास्ता तय कर लिया है मैंने तुम्हारी पाक रूह में अपनी रूह को
Read Moreपता नहीं .. कहाँ से आ गए विरह के तम में मिलन की ज्योति के कुछ किरण जिसके कारण यह
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