कविता

प्रणय

 

वियोग में ही
होता है
प्रणय का अहसास
बरसों पहले
पल भर के लिए ही सही
तुमसे मेरा परिचय हुआ था
इसे भी मानता हूँ मैं
मुझ पर तुम्हारा एहसान
उसी मिलन पर है मुझे नाज़

अन न तुम्हारी परछाई है
न तुम्हारी तस्वीर हैं
इस जहाँ में तनहा छोड़ गयी हो
यह कह कर की
अब फिर न होगी
कभी तुमसे मेरी मुलाक़ात
मौन हो गए है साज

मेरी मान्यता  है
प्यार ,शब्दों का
नहीं होता है मोहताज
इसीलिए तो
सुनायी देती है
वादियों में खोयी हुई
तुम्हारी मधुर आवाज

धुंधली सी हो चुकी
तुम्हारी आकृति में
सुबह की रश्मियों की तरह ही
उभर आती है
तुम्हारी मधु सी मुस्कान
तुम्हारी शोख निगाहें
मेरा पीछा करती सी लगती हैं
इस रहस्य का
नहीं पाया हूँ जान
अब तक मैं राज

कभी किसी अजनबी ने
यह जताकर
किया था मुझसे एतिराज़
प्रेम…..
कभी खत्म नहीं होता
जीवन से भी लंबी हैं उसकी राह
उसकी कोई मंजिल नहीं होती
उसका होता हैं सिर्फ आगाज़

हार कर भी मैं जीत गया हूँ
दर्द  से युक्त है
मेरा अनुराग
तन्हाई की धुंध में
बर्फ सी घुली है
तुम्हारी याद
तुम्हारे और मेरे बीच
झील सी गहरी ख़ामोशी है आज

*किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

6 thoughts on “प्रणय

Comments are closed.