मंझधार
बिना शब्दों के तुझे लिखने लगा हूँ क्षितिज से मै तुझे दिखने लगा हूँ शमा बनकर तू जल उठी है
Read Moreमेरे संभावित उपन्यास की तुम हो नायिका महाकाव्य हो मेरा तुम अनलिखा मन ही मन तुम्हें पढता रहता हूँ
Read Moreतुम्हारी चेतना के ध्यान कक्ष में मेरी सघन नीरवता की है गूँज तुम्हारे मन की आँखों के समक्ष कभी
Read Moreमेरे ह्रदय की जमुना की धारा का तुम्हारे ह्रदय की पावन गंगा की धारा में हो जाए विलय जाते
Read More